अध्याय 6 - प्रकीर्ण
राज्य सरकार की निर्देश देने की शकित
28- 1. इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों का निर्वहन करने में, निगम नीति विषयक ऐसे मामलों में जिनमें लोकहित अंतर्गत हो, ऐसे निर्देशों से मार्गदर्शित होगा जैसे कि राज्य सरकार उसे लिखित में दे, और यदि कोर्इ ऐसा प्रश्न उदभूत होता है कि क्या वह निर्देश नीति विषयक किसी ऐसे मामले में संबंधित है, जिसमें लोकहित अंतर्गस्त है तो उस पर राज्य सरकार का विनिश्चय अंतिम होगा। 2. जहां निगम उपधारा 1 के अधीन दिए गए राज्य सरकार के निर्देशों को कार्यानिवत करने के परिणामस्वरूप प्रत्यक्षत: कोर्इ हानि उपगत करता है, वहां उस हानि की पूर्ति राज्य सरकार द्वारा की जाएगी
सरकारी कर्मचारियों का निगम को स्थानान्तरण.
29- 1. निगम की स्थापना की जाने पर तथा उसके पश्चात राज्य सरकार समय समय पर यह निदेश दे सकेगी कि राज्य सरकार के विधमान अधिकारियों तथा सेवकों में से ऐसे अधिकारियों तथा सेवकों की, जो उसकी राय में उसकी आवश्यकता से अधिक हो गए है, सेवाएं ऐसी तारीख से, जो उसके द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए ;जो इस धारा में इसके पश्चात नियम तारीख के नाम से निर्दिष्ट हैद्ध, समाप्त हो जाएगी और उसके पद उत्सादित हो जाएंगी, ओर वे उस तारीख को ;जो भिन्न-भिन्न अधिकरियों तथा सेवकों के लिये भिन्न भिन्न हो सकेगीद्ध निगम के अधिकरी या सेवक हो जाएंगे. 2. राज्य सरकार का ऐसा प्रत्येक स्थायी या अस्थायी कर्मचारी, जिसके संबंध में उपधारा 1 के अधीन निर्देश जारी किया जाता है, नियत तारीख को तथा नियत तारीख से किसी ऐसे स्थायी या अस्थायी पद पर, जो नियत तारीख से निगम की स्थापना में सृजित हो जाएगा, नियम का यथासिथति स्थायी या अस्थायी कर्मचारी हो जाएगा. 3. इस प्रकार स्थानान्तरित किया गया कोर्इ अधिकारी या सेवक, निगम के अधीन पद उसी अवधि के लिए उसी पारिश्रमिक पर तथा सेवा की उन्हीं अन्य शर्तो पर और पेंशन, उपदान;ग्रेच्युटीद्ध भविष्य निधि तथा अन्य बातों के संबंध में उन्हीं अधिकारों तथा विशेषाधिकारों सहित धारण करेगा जो इस अधिनियम के प्रवृत्ता न होने की दशा में उसे नियत तारीख को अनुज्ञेय हुए होते. राज्य सरकार के अधीन उसके द्वारा की गर्इ कोर्इ सेवा निगम के अधीन की गर्इ सेवा समझी जाएगी. वह निगम के अधीन उस समय तक सेवा में बना रहेगा जब तक कि उसका नियोजन समयक रूप से समाप्त नहीं कर दिया जाता या जब तक कि उसका पारिश्रमिक या सेवा शर्त निगम द्वारा उस विधि के अनुसरण में, जो तत्समय उसकी सेवा शर्तो को शासित करती हो, सम्यक रूप से पुनरीक्षित या परिवर्तित नहीं कर दी जाती। परन्तु किसी ऐसे अधिकारी या सेवक के मामले में नियत तारीख के ठीक पूर्व लागू सेवा शर्तो में कोर्इ ऐसा फेरफार, जो उसके लिए अहितकर हो, राज्य सरकार के पूर्व अनुमोदन से ही किया जायेगा अन्यथा नहीं. 4. उपधारा 1 में निर्दिष्ट कर्मचारियों के नामों जो धनराशियां, उनके लिए गठित की गर्इ किसी पेंशन, भविष्य निधि, उपदान या वैसी ही निधियों में जमा हो, वे नियत तारीख तक केलिये शोध्य संचित ब्याज सहित तथा ऐसी निधियों से संबंधित लेखाओं के साथ राज्य सरकार द्वारा निगम को अन्तरित कर ली जाएगी, नियत तारीख को तथा उसके पश्चात निगम, राज्य सरकार को अपवर्जित करके, इस बात के दायित्वाधीन होगा कि वह पेंशन, भविष्य निधि, उपदान या वैसी ही अन्य धनराशियों का जो ऐसे कर्मचारियों को देय हो, समुचित समय पर संदाय उनकी सेवा-शर्तो के अनुसार करें. 5. उपधारा 1 में अन्तविष्ट कोर्इ भी वाद किसी ऐसे कर्मचारी को लागू नहीं होगी जो निगम का कर्मचारी न बनने या निगम का कर्मचारी न बने रहने का अपना आशय, नियत तारीख से दो मास के भीतर या ब़ाए गए ऐसे संय के भीतर, जिसे राज्य सरकार, साधरण या विशेष आदेश द्वारा विनिर्दिष्ट करे, राज्य सरकार को दी गर्इ लिखित सूचना द्वारा प्रज्ञापित कर देता है, जहां किसी कर्मचारी से ऐसी सूचना प्राप्त होती है वहां- किसी स्थायी कर्मचारी की दशा में, उसे पेंशन, उपदान, भविष्य निधि संबंधी ऐसे फायदे तथा ऐसे अन्य पफायदे, जो कि सरकारी सेवा से नियत तारीख को निवृत्त होने की दशा में उसे प्रोदभूत होते देखकर सेवा-निवृत्त हो जाने दिया जाएगा। किसी अस्थायी कर्मचारी की दशा में, राज्य सरकार के विधमान सेवा-नियमों के अनुसार उसे सूचना देकर या सूचना के बदले पारिश्रमिक देकर, उसकी सेवाएं समाप्त कर दी जाएंगी. 6. पूर्वगामी उपधाराओं में निर्दिष्ट किसी वाद के होते हुए भी - पशु चिकित्सा विभाग के नियोजन में से किसी ऐसे व्यकित की जिसके लिये कोर्इ अनुमानसिक कार्यवाही लंबित हो या जिसे उसकी सेवासमापित संबंधी या अनिवार्य सेवानिवृति संबंधी कोर्इ सूचना या आदेश इस अधिनियम के आरंभ होने की तारीख के पूर्व जारी किया जा चुका हो, निगम में स्थानान्तरित नहीं किया जाएगा और उक्त तारीख के पश्चात ऐसे व्यकित के संबंध में ऐसी रीति में तथा ऐसे कर्मचारी ------------- यदि राज्य सरकार के किसी कर्मचारी की सेवाएं निगम की उपधारा 1 के अधीन अंतरित हो गर्इ हो तो ऐसे अंतरण के पश्चात निगम कइस बात के लिए संक्षम होगा कि वह ऐसे कर्मचारी के विरूद्ध ऐसी अनुशासनिक या अन्य कार्यवाही जो वह उचित समझे ऐसे कर्मचारी के उस समय के जबकि वह राज्य सरकार की सेवा में था, किसी कार्य या कार्यलोप या आचरण या अभिलेख का ध्यान में रखते हुए करें।

निगम का समापन

 30- निगम का समापन राज्य सरकार के आदेश से तथा ऐसी रीति में, जैसी रीति में, जेसी कि वह निदेशित करे किया जायेगा अन्यथा नहीं.

निदेशक की क्षतिपूर्ति.
31- 1. प्रत्येक निदेशक की समस्त ऐसी हानियों तथा व्ययों के लिये, जो उसके द्वारा अपने कर्तव्यों के निर्वहन में या कर्तव्यों निर्वहन के संबंध में उपगत किए गए हो, असवाय उन हानियों तथा व्ययों के जो उसके ऐसे कार्य या कार्यलय जो तत्समय प्रबृत किसी निधि के अधीन अपराध है, के करण हुए हों, क्षतिपूर्ति निगम द्वारा की जाएगी। 2. कोर्इ निदेशक किसी भी ऐसी हानि या ऐसे व्ययों के लिये उत्तरदायी नहीं होगी जो निगम की ओर से अर्जित की गर्इ या ली गर्इ किसी सम्पतित या प्रतिभूति के मूल्य की या उस पर के हक की अपर्याप्तता या कमी के कारण अथवा किसी ऋणी के या निगम के प्रति बाध्यताधीन किसी व्यकित के दिवाले या संदोष कार्य के कारण अथवा उसके संबंध में अपने पद के कर्तव्यों के निष्पादन में सदभावपूर्वक की गर्इ किसी बात के कारण निगम को उठाने पड़े हों।
 निदेशकों की नियुकित में त्राुटियां होने के कारण कार्यो आदि का अविधिमान्य न होना
32- 1. बोर्ड का या बोर्ड की किसी समिति का कोर्इ भी कार्य या कार्यवाही केवल इस कारण अविधिमान्य नहीं होगी कि- यथासिथति बोर्ड या समिति में कोर्इ रिकित है या उसके गठन में कोर्इ त्राुटि है, या निगम के निदेशक के रूप में या समिति के सदस्य के रूप में कार्य करने वाले किसी व्यकित के नामनिदेशन में कोर्इ त्राुटि है, या यथासिथति बोर्ड या समिति की प्रकि्रया में कोर्इ त्राुटि या अनियमितता है. 2. निगम के निदेशक के रूप में या बोर्ड की किसी समिति के सदस्य के रूप में सदभावपूर्वक कार्य करने वाले किसी व्यकित द्वारा किए गए किसी कार्य को केवल इस आधर पर अविधिमान्य नहीं समझाा जायेगा कि वह व्यकित निदेशक या सदस्य होने के लिये निरहित था या यह कि उसकी नियुकित में कोर्इ त्राुटि थी।
निगम के कर्मचारीबन्द लोक सेवक होंगे
33- निगम के अधिकारियों और कर्मचारियों को या ऐसे अन्य व्यकित को, जिसे निगम या राज्य सरकार द्वारा प्राधिकृत किया जाए, जबकि वे इस अधिनियम के उपबन्धों में से किसी उपबन्ध के अनुसरण में कार्य कर रहे हों या जबकि उनका इस प्रकार कार्य करना तात्पर्यित हो, भारतीय दण्ड संहिता, 1860 ;1860 का सं. 45द्ध की धारा 21 के अर्थ के अंतर्गत लोक सेवक समझा जाएगा.
 इस अधिनियम के अधीन की गर्इ कार्रवाही का संरक्षण
34- इस अधिनियम के अनुसरण में सदभावपूर्वक की गर्इ या की जाने के लिये आशयित किसी बात से हुर्इ या संभाव्यत: होने वाली किसी हानि या नुकसान के लिये निगम के विरूद्ध या इस अधिनियम के अधीन किन्ही कृत्यों का निर्वहन करने के लिए निगम द्वारा प्राधिकृत किए गए किसी अन्य व्यकित के विरूद्ध के विरूद्ध कोर्इ भी वाद या अन्य विधिक कार्यवाही नहीं होगी।
 विश्वस्तता तथा गोपनीयता की घोषणा
35- निगम का प्रत्येक निदेशक, संपरीक्षक, अधिकारी या अन्य कर्मचारी या राज्य सरकार का कोर्इ ऐसा कर्मचारी, जिसकी सेवाओं का उपयोग निगम द्वारा किया जाता है, अपना कर्तव्य ग्रहण करने के पूर्व विश्वस्तता तथा गोपनीयता की घोषणा विनियमों द्वारा विहित किए गए प्रारूप में करेगा।
शकितयों का प्रत्यायोजन
36- बोर्ड इस अधिनियम के अधीन की अपनी शकितयों तथा कृत्यों में से ऐसी शकितयां तथा कृत्य, जिन्हें वह आवश्यक समझे, बोर्ड की किसी समिति को या निगम के अध्यक्ष या पबंध निदेशक या किसी अन्य अधिकारी को प्रत्यायोजित कर सकेगा।
नियम बनाने की राज्य सरकार की शकित
37- 1. राज्य सरकार इस अधिनियम के उपबंधों को प्रीाावशील करने के लिए ऐसे नियम बना सकेगी जो इस अधिनियम के उपबंधों से अंसंगत न हों. 2. बोर्ड के अधीन बनाए गए समस्त नियम विधान सभा के पटली पर रखे जाऐंगे।
विनियम बनाने की निगम की शकित
38- 1. निगम, राजय सरकार के पूर्व अनुमोदन से, उन समस्त विषयों के लिए जिनके लिए इस अधिनियम के अधीन कोर्इ नियम नहीं बनाए गए हैं आ

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